शरीर को बुरी तरह प्रभावित करता है 'Long Covid', जानें क्या है और पहचाने लक्षण

शरीर को बुरी तरह प्रभावित करता है 'Long Covid', जानें क्या है और पहचाने लक्षण

सेहतराग टीम

कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ते चले जा रहे हैं। वहीं साथ ही इससे जुड़े कई तरह के तथ्य भी सामने आ रहे हैं। रोजाना नए-नए खुलासे हो रहे हैं। हाल ही में कोरोना को लेकर एक और बड़ा नाम सामने आ रहा है 'लॉन्ग कोविड'। लॉन्ग कोविड मतलब लंबे समय तक किसी व्यक्ति के कोरोना वायरस के संक्रमण से प्रभावित होना। लंबे समय से कोविड-19 के शिकार लोगों पर मानसिक रूप से बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है। यह कई हफ्तों तक रह सकता है और रोगी की रिकवरी को भी प्रभावित करता है।

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हाल में सामने आई एक स्टडी में पता चला कि लगातार रहने वाले लक्षण के कारण सांस लेने, दिमाग, दिल और इसकी प्रणाली, गुर्दे, आंत और त्वचा पर बुरा असर पड़ सकता है। येल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक अध्ययन में इस बात दावा किया गया कि कोरोना संक्रमण शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र से निकलने वाले एंटीबॉडीज पर असर डालता है, जिससे वे पथभ्रष्ट हो जाते हैं। ऐसे ऑटो एंटीबॉडीज गलती से शरीर पर ही हमला करने लगते हैं।  यही कारण है कि वायरस के हमले से उबर चुके मरीजों को लंबे वक्त तक सांस लेने में परेशानी, थकावट, गंधहीनता जैसे असर बने रहते हैं, जिन्हें लॉन्ग कोविड कहा जाता है।

कोविड-19 और लॉन्ग कोविड में अंतर (Covid-19 and Long Covid)

कोरोना संक्रमित को थकान बहुत जल्दी होती है। ऐसे लोगों के लिए आराम करना बेहद जरूरी है क्योंकि एक बार थक जाने के बाद शरीर दोबारा तुरंत राहत महसूस नहीं करता है। वहीं लॉन्ग कोविड के शिकार लोगों के अक्सर शरीर में दर्द , मांसपेशियों में दर्द, जोड़ों में दर्द की शिकायत रहेगी। लॉन्ग कोविड का सबसे ज्यादा खतरा ऑर्गन पर पड़ता है। एक सर्वे के अनुसार लॉन्ग कोविड की वजह से आंत, किडनी, फेफड़े और दिल को काफी नुकसान पहुंच सकता है। लॉन्ग कोविड धीरे- धीरे इन महत्वूर्णों अंगों को निशाना बनाता है।

लॉन्ग कोविड के चार मुख्य लक्षण (Long Covid Symtoms in Hindi)-

  • फेफड़ों और दिल को नुकसान
  • पोस्ट इंटेनसिव केयर सिंड्रोम
  • पोस्ट वायरल फटीग सिंड्रोम
  • लगातार रहने वाले कोविड-19 से जुड़े लक्षण

कोरोनावायरस के मरीजों के खून में 'ऑटोएंटीबॉडी' की संख्या अधिक होती है जो शरीर की कोरोना से लड़ने वाली एंटीबॉडीज को अवरुद्ध करके व्यक्ति के मस्तिष्क, रक्त वाहिकाओं और यकृत सहित कई क्षेत्रों पर हमला करते हैं। शायद यही वजह है कि कोरोना संक्रमित कुछ रोगियों में लंबे समय तक थकान, सांस फूलना और मस्तिष्क से समस्याओं जैसे कई लक्षण दिखाई देते हैं। 

येल विश्वविद्यालय के महामारी विशेषज्ञ व अध्ययन के शोधकर्ता एरॉन रिंग बताते हैं कि आम लोगों की तुलना में संक्रमण से प्रभावित रहे लोगों के रक्त में ऑटोएंटीबॉडीज की अधिकता होती है। ये ऑटो एंटीबॉडीज शरीर को बाहरी वायरस के हमले से सुरक्षा देने के बजाय, शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र, अंगों व तंतुओं पर ही हमलावर हो जाता है।

येल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 30 अस्पताल कर्मियों के साथ 194 रोगियों के रक्त में मौजूद 'ऑटोएंटिबॉडी' की संख्या की जांच की। अपनी इस रिसर्च में उन्होंने पाया कि  जिस मरीज के रक्त में जितने अधिक पथभ्रष्ट एंटीबॉडीज या ऑटोएंटीबॉडीज बनती हैं, उनके शरीर में उतना ज्यादा कोरोना संक्रमण का दीर्घकालिक असर बना रहता है। ये ऑटो एंटीबॉडीज लंबे वक्त तक शरीर में मौजूद रहते हैं इसलिए मरीज की स्थिति और खराब होती जाती है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि संक्रमण से ठीक हो चुके 60 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों के शरीर में लॉन्ग कोविड का असर लंबे वक्त तक रहता है। शोध में पाया गया कि हर पांच में से एक मरीज लॉन्ग कोविड से जूझ रहा है। हालांकि इस स्टडी से यह भी साफ हो गया कि लंबे समय तक लॉन्ग कोविड के लक्षण सभी रोगियों में नहीं दिखाई देते। दो सप्ताह की अवधि तक बीमार रहने वाले लोगों में ही लॉन्ग कोविड के लक्षण मौजूद होते हैं।

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